बाबुल

बाबुल के आंगन को छोड़ चली आज । कुछ लम्हें बस रह गए ।पापा की लाडली हूँ मैं, माँ की जान।चंद घंटो में अब मेहमान बन जाऊंगी।बिटिया तो हूँ इस घर की, मगर अब मेरा आना जाना ही रह जाएगा, इस घर को छोड़कर, विदाई लेकर मेरे सारे रिश्तों को यहीं आँखों में समाए जाना होगा।
बहुत प्रयास किया रोकने का, मगर नहीं रुक रहे यह आँसूं।यह आख़िरी पल कुछ अब बाकी हैं।माँ को देख रही हूँ, सुबह से लगी लगी हुई है।कभी रसोई में,कभी फूल वालों के साथ, कभी रिश्तों को निभाती, कभी मेरी और नज़र पड़े तो हंसकर सर सहलाकर चल देती।मानो कह रही हो मेरी लाडली की डोली तो धूम से निकलेगी।दुनिया देखती रह जायेगी।मगर दिल थम सा जाता होगा, उसका भी एक बार।क्यों सबकी लाडलियाँ अपना घर छोड़कर चली जाती है?अपनों को पराया कर ,चलती वक़्त के साथ पंख लगाकर एक दिन उड़ जाती हैं।
हाँ! बेटी हूँ मैं।बेटी घर की।जन्म लेते ही दादी बोली लक्ष्मी आई घर की।दादू के पीठ पर लदकर बाजार घूम आती यह लाडो।खेल खेल में उनको घोड़ा बनाती ,सारे घर में भगाती।चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक।याद आते ही उनकी छवि निहारने लगी दीवारों पर। वो तो बस सितारों संग रोज़ मुझे देखते होंगे।आशीर्वाद दूर से ही देते होंगे।मेरी सिफारिश करते होंगे भगवान से की हमारी लाडो को खुश रखना।रोज़ सितारों के बीच उनको ढूंढती हूँ।
अब सब कहते एक नए रिश्ते में बंध रही हो,कुछ कायदा, कुछ मर्यादा है,जिनका पालन करना पड़ेगा।धीरे-धीरे बात करना ,धीरे से हँसना, सबके बाद खाना।सब आदतें बदलना।कुछ समझ नहीं आता।यह क्या है?क्या यह मेरे से हो पायेगा।कैसे अपनाऊंगी?अगर गलती हुई तो?इस कश्मकश में हृदय कांप उठता।
अब यह मस्ती न रहेगी।न रहेगी यूँ उछल कूद ,यूँ आंगन में चहचहाना,भरी दोपहरी में लूडो खेलना आधी रात तक मूवी देखना।यह रीनू ,मिक्की ,टिक्की संग कॉफ़ी बनाकर पीना ,मैग्गी के चटकारे लेना या देर रात को सबके सोने के बाद रसोई में जाकर फ्रिज से मिठाई का डिब्बा चुराना ..अरे! चोरी उन दिनों पाप नहीं, पेट पूजा की चोरी तो भगवान श्री कृष्ण जब किये हैं तो हम तो ठहरे अब सामान्य इंसान पीछे थोड़े रहेंगे और रंग बदल – बदल कर नेल पॉलिश के शेड्स लगाना।वाह री दुनिया इतनी आज़ादी के बाद यूँ कैद में रहेगी बुलबुल।तड़प न जाएगी।
माँ पापा की चिंता उनके आंखों से आज झलकती है।जिस बेटी ने एक गिलास पानी तक अपने हाथों से लिया नहीं वो एक घर की ज़िम्मेदारी कैसे ले पाएगी।एक परिवार की ज़िम्मेदारी ,इतने लोगों को अपनाकर चलना सबका मन जितना कोई आसान काम नहीं है।
हमारे समाज का यह नियम है कि एक बार बेटी विदा होती है तो बस अब मेहमान बनकर आती है।घरवाले आज जितना भी कह लें कि यह घर आज भी उसका है मगर सच तो यही है कि अब वो किसी भी वक़्त मायके नहीं आ सकती।पति हाँ बोले तो आएगी वरना अशांति करके आना भी ठीक नहीं लगता।उषा आंटी ऐसे ही कहती हैँ बेटियां विदा होती है तो हकदार बदल जाते हैं।लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए।क्योंकि जब एक लड़की अपने पूरे परिवार को छोड़कर आपके लिये आई हैं तो उसको उतना सन्मान देना उचित है एवं परिवार का दाइत्व।
इस विदाई और मेरे पराये होने का मर्म मेरे हृदय में बस गया है।
पर राजन ऐसे नहीं हैं।हम साथ है।एक हैं।यह यकीन दिलवाया है मुझे।दुनिया बदल रही है तुम मेरी अर्धांगिनी हो ऐसे कहते है राजन।यही कहा मेरा हाथ थामे भरोसा रखो।तुम मेरी हो अब।तुम्हारा हर सुख- दुख अब मेरा।भरोसा तो है मुझे तभी राज़ी हुई । मैंने राजन को अपनाया।
एक टक माँ को निहारती एक टक पापा को।कैसे काटेंगे दिन मेरे बैगर।सुबह होने से पहले मेरी विदाई है।दिल में भूचाल सा है।दिल परेशान।नये रिश्ते, नया घर,नया सामान हर लड़की के जीवन में यह समय तो आता ही है।फिर वो उसके ऊपर है कि वो यह संसार अपना कैसे बनाती है।आज इस मंज़र में मैं हूँ।
आँखे नम है।दिल में आस है कि राजन साथ देंगे।हमारा घर स्वर्ग से सुंदर होगा।घर एक और बनाने, इस घर को बेगाना किये, चल पड़ी ससुराल।
जिस घर में बचपन पला,हो रही उस घर से बेगानी,
दो परिवारों के बीच उसकी बसेगी ज़िंदगानी,
कुछ अजीब ही है हम बेटियों की कहानी।
दुनिया ने कैसी रीत बनाई,
क्या बेटियां होती है पराई?
ऊपर रहकर तू झांक ज़रा,
इन भीगी पलकों को तू देख ज़रा।
देखना रोयेगा तो तू भी खुदा,
जब होंगी बेटियां अपने घर से जुदा।

इस कहानी को पढ़कर मेरे दो ब्लॉगर दोस्त अपने कमेंट्स में यह लिखे जिसको मैं अपने ब्लॉग में शामिल कर रही हूँ उनके रज़ामंदी से।मुझे बेहद पसंद आए यह कविताएं।

मेरी आत्मा तक को छू गई ये कविता

2 पंक्ति मेरी तरफ से भी

फूलों सी नाजुक होती है बेटियां

थोड़ी सी भावुक होती है बेटियां

हर किसी को अपना बना लेती हैं

शायद विदाई पर इसलिए रोती है बेटियां।

अनुराग

चहचहाती चिड़ियों सी
घर की रौनक बेटियां
आज़ाद पंख फैलाये हुए
माँ पापा की दुलारी बेटियां
लोग कहते हैं अपने घर में भी परायी हैं बेटियां
काश पराये घर में भी अपनी बन जाएँ बेटियां

Alubhujiablog

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